जर्मनी को क्यों है भारतीय कामगारों की जरूरत? अनुभवी लोगों की कर रहा मांग

जर्मनी इस समय श्रमिकों की कमी से जूझ रहा है. इस कमी को पूरा करने के लिए भारत के साथ समझौता किया है. दोनों देशों के बीच हुए समझौते के दौरान ये तय हुआ कि इस कमी को पूरा करने के लिए उन्हें भारत से स्क्लिड लोगों की जरुरत है.;

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Edited By :  सार्थक अरोड़ा
Updated On : 26 Oct 2024 1:13 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को देशवासियों के लिए बड़ा एलान किया था. उन्होंने कहा कि जर्मनी ने ये सालाना जारी होने वाले वीजा कोटा को 20 हजार से 90 हजार तक बढ़ाने का फैसला किया है. दोनों देशों के बीच ये द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने के मकसद से लिया गया है. दरअसल पिछले काफी समय से जर्मनी कुशल कारीगरों की कमी से जूझ रहा है. इसे दूर करने के लिए जर्मनी ने भारत सरकार से समझौता किया है.

अब ऐसे में एक सवाल ये सामने आता है कि आखिर जर्मनी को भारतीय लोग ही देश में काम करने के लिए क्यों चाहिए? तो इसका सीधा जवाब है कि दोनों देशों के बीच इस फैसले से आर्थिक और व्यवसायिक संबंधों में सुधार आने की उम्मीद लगाई जा रही है. वहीं ये फैसला इसलिए भी लिया गया है. इससे जर्मनी की आबादी को बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी. रिपोर्ट की माने तो साल 2014 में लगभग 27 प्रतिशत ऐसे लोग थे जिनकी उम्र 60 साल या फिर उससे अधिक थी. वहीं इस संख्या पर जर्मन को काफी चिंता है. क्योंकी साल 2030 ये 27 प्रतिशत से 35 प्रतिशत की उम्मीद है.

किन क्षेत्रों में मिलेगा काम?

बात करें इस जारी हुए कोटे के अनुसार नर्स, जेडर्ली केयर, चाइल्डकेयर, ट्रक ड्राइवर और इंजीनियरिंग और IT क्षेत्रों में नौकरियां दिलवाने में काम आने वाला है. वहीं इस पत्रकारों से बातचीत के दौरान विदेश मंत्री अलीना बेयरबॉक ने कहा कि भारतीय युवा पीढ़ी जर्मन की मार्केट में काम करने के लिए घुसने का प्रयास कर रही हैं. उन्होंने कहा कि जर्मनी को भी जरुरत है स्किल्ड वरर्क्स की और ये दोनों देशों के युवाओं के लिए विन-विन सिचुएशन बना कर सकती है.

जर्मन में कितने भारतीय बच्चे कर रहे पढ़ाई?

वहीं जर्मन एकेडमिक एल एक्सचेंज सर्विस के नए आंकड़ों के अनुसार 2023 से 2024 के विंटर सेमेस्टर के दौरान भारत के 49,483 भारतीय जर्मनी में अपनी आगे की पढ़ाई को पूरा कर रहे हैं. इन आंकड़ों में पिछले वर्ष के अनुसार काफी वृद्धि आई है. वहीं इसी के चलते भारतीय चीन को भी पीछे छोड़ते हुए अंतरराष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा समूह बन गया है.

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