सोशल मीडिया फोटो को मान सकते हैं 'बेवफाई' का सबूत, पति के पक्ष में HC का फैसला; जानें कोर्ट ने क्या कहा?
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एडल्ट्री के संबंध में निर्णय देते हुए कहा कि किसी के खिलाफ सोशल मीडिया पर मिले सबूतो को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. दरअसल ये पूरा मामला तलाक के बाद मिलने वाले खर्चे को लेकर पत्नी द्वारा किया गया था जिसमें फैमिली कोर्ट ने पति के खिलाफ निर्णय दिया था. इसके बाद ही इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी.;
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि एडल्ट्री से जुड़े मामलों में सोशल मीडिया से लिए गए सबूतों को मेंटेनेंस की याचिका पर विचार करते समय नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. जज सुमित गोयल ने कहा कि फैमिली कोर्ट को अपने विवेक का प्रयोग करते हुए किसी भी सबूत पर विचार करना चाहिए, जो मामले के निपटारे के लिए जरूरी हो सकता है.
कोर्ट ने कहा कि पति द्वारा दिए गए सोशल मीडिया से लिए प्रूफ जैसे फोटो या मेसेज को कोर्ट में मेंटेनेंस और केस के खर्च पर निर्णय के समय ध्यान में रखा जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया के सबूत IPC के तहत माने जा सकते हैं.
कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि -कोर्ट की प्रोसीडिंग में व्याख्या सही और निष्पक्ष तरीके से होनी चाहिए. अभी के समय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का बहुत ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है. इनसे मिले सबूत को प्रूफ के रूप में माना जा सकता है, क्योंकि ये लोगों के लाइफ में क्या चल रहा है वो दिखाते हैं.
पूरा मामला
पति ने फैमिली कोर्ट के उस डिसिजन को चैलेंज किया था जिसमें उसे अपनी पत्नी को हर महीने 3000 रुपए मेंटेनेंस के तौर पर देना था और साथ ही केस करने के खर्च के रूप में 10,000 रुपए देने का ऑर्डर दिया गया था. पति ने दावा किया था कि पत्नी का एक्सट्रा मैरिटल अफेयर है और वो इस मेंटेनेस की हकदार नहीं है. उसने अपने दावे के सपोर्ट में सोशल मीडिया से ली गई तस्वीरें कोर्ट में पेश की थी, जिसमें दिखाया गया कि उसकी पत्नी किसी के और के साथ रह रही थी.
कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने दोनों की बात सुनने के बाद पति के फेवर में फैसला सुनाया कि पति चाहे तो सोशल मीडिय के सबूतों को आधार पर मेंटेनेस और खर्च देने का विरोध कर सकता है. कोर्ट ने भी कहा कि पति और पत्नी का एक दूसरे की तरफ कुछ दायित्व है और शादी टूटने का कारण अगर एडल्ट्री है तो पति को खर्च उठाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
सोशल मीडिया
कोर्ट ने कहा कि अक्सर इस तरह के केस में सबूत मिलना बहुत मुश्किल होता है इसलिए सिचुएशन के हिसाब से निर्णय लिया जा सकता है. सोशल मीडिया के फोटो और मैसेज को भी सही तरीके से जांचना चाहिए.