क्‍या है डाटा प्रोटेक्‍शन एक्‍ट की धारा 44(3) जिस पर हो रहा बवाल, हटाने की क्‍यों उठ रही मांग?

Data Protection Act: देश में पिछले कुछ समय से डेटा प्रोटेक्शन कानून 2023 की धारा 44(3) को लेकर विवाद देखने को मिल रहा है. सरकार ने इसमें बदलाव का फैसला लिया है, लेकिन इस संशोधन से विपक्ष नाराज है. यह बदलाव बदलाव व्यक्तिगत जानकारी के खुलासे पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाता है. साथ ही पत्रकार को सार्वजनिक हित से जुड़ी जानकारी तक पहुंचने और उसे इकट्ठा करने से रोकता है.;

( Image Source:  canava )

Data Protection Act: केंद्र सरकार ने डेटा प्रोटेक्शन कानून 2023 में कुछ बदलाव करने का फैसला किया है. सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस ने आपत्ति जताई है. 23 मार्च को राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव को एक पत्र लिखकर कानून की धारा 44(3) पर फिर से विचार करने की अपील की थी और उसे खत्म करने को कहा था.

मंगलवार को राहुल गांधी ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार निजता की रक्षा के बहाने सार्वजनिक सूचना तक पहुंच को सीमित करना चाहती है. इसलिए डिजिटल डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 (DPDP ACt) का उपयोग करना चाहती है. इस पूरे मामले के केंद्र में डेटा प्रोटेक्शन कानून 2023 की धारा 44(3) है. आइए इसके बारे में डिटेल में जान लेते हैं.

DPDP धारा 44(3)

11 अगस्त, 2023 को डेटा प्रोटेक्शन कानून राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी. जनवरी में आईटी मंत्रालय ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण नियम, 2025 के ड्राफ्ट पर प्रतिक्रिया और टिप्पणियां मांगी थीं. 18 मार्च तक काननू पर सबको अपनी राय जमा करनी थी. एक्ट में यह बदलाव व्यक्तिगत जानकारी के खुलासे पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाता है. साथ ही पत्रकार को सार्वजनिक हित से जुड़ी जानकारी तक पहुंचने और उसे इकट्ठा करने से रोकता है. एक्ट की धारा 44(3) में एक परिवर्तन का उल्लेख है जो आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(जे) में किया जाएगा.

आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह परिवर्तन, 2005 के अधिनियम के तहत सरकारी एजेंसियों दी की जाने वाली सूचना की मात्रा को बहुत कम कर देगा. नए संशोधन से एक पत्रकार जो भ्रष्टाचार से जुड़ी जानकारियों तक पहुंचता है, वह भी संबंधित अधिकारियों का अब नाम नहीं छाप सकता है. अगर किसी ने ऐसा किया तो उस पर 500 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है.

RTI की धारा 8(1)(जे) पर कैसे पड़ रहा असर?

RTI की धारा 8(1)(जे) के अनुसार, किसी भी नागरिक को ऐसी सूचना देने की बाध्यता नहीं होगी जो व्यक्तिगत सूचना से संबंधित हो, जिसके किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध न हो, या जो व्यक्ति की निजता पर अनुचित आक्रमण करे. जानकारी तब तक नहीं मिलेगी जब तक कि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी यह देख सकें की डेटा मांगने का उद्देश्य सही काम के लिए है या नहीं.

RTI के तहत ऐसी कोई भी जानकारी संसद या फिर राज्य की विधानसभा, विधानपरिषद में पाई जाती है, उसे जानकारी को किसी नागरिक को देने से मना नहीं किया जा सकता. यह प्रावधान उन जानकारियों को पब्लिक करने का भी अधिकार देता है, जहां मामले सार्वजनिक हित से जुड़े हों और जहां गोपनीयता का कोई गैरजरूरी उल्लंघन न हुआ हो. लेकिन आईटी एक्ट की धारा 44(3) में संशोधन आरटीआई कानून को प्रभावित कर रहा है.

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