'शराब पीकर इंसान दरिंदा बन जाता है', सात साल की बेटी से रेप करने वाले डॉक्‍टर को सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी जमानत - 10 बड़ी बातें

सुप्रीम कोर्ट ने 7 साल की बेटी के साथ यौन शोषण के दोषी डॉक्टर की सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि "शराब पीकर आदमी जानवर बन जाता है" और आरोपी कोई राहत पाने लायक नहीं है. बच्ची की गवाही को कोर्ट ने सच्चा माना और कहा कि सिर्फ अपील लंबित होना राहत का आधार नहीं हो सकता. याचिका अंततः वकील ने खुद वापस ले ली. यह फैसला संवेदनशील मामलों में न्यायिक कठोरता की मिसाल बना.;

Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On : 29 May 2025 4:23 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने एक शर्मनाक और रूह कंपा देने वाले मामले में सख्त रुख अपनाते हुए एक हृदय रोग विशेषज्ञ (कार्डियोलॉजिस्ट) को उसकी 7 साल की बेटी के यौन शोषण के मामले में सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. डॉक्टर ने शराब के नशे में बच्ची के साथ कथित रूप से दुष्कर्म किया था.

कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, "शराब पीकर आदमी जानवर बन जाता है." पीड़िता की मां द्वारा दर्ज एफआईआर में आरोप था कि बच्ची को पिता ने हल्द्वानी बुलाया और वहीं उसके साथ दुष्कर्म किया. कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्ची की गवाही विश्वसनीय है और वह बिना डरे क्रॉस एग्जामिनेशन से गुज़री है. जब वकील ने अपील लंबित होने और गवाही को 'ट्यूटरड' बताया, तो सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा, "ऐसे मामलों में कोई राहत नहीं मिल सकती." अंततः डॉक्टर की याचिका वापस ले ली गई. पढ़ें मामले से जुड़ी 10 बड़ी बातें...

  1. सुप्रीम कोर्ट ने एक पिता की जमानत याचिका ठुकराई, जिसने अपनी ही 7 साल की बेटी के साथ शराब के नशे में यौन शोषण किया था. अदालत ने कहा कि आरोपी डॉक्टर की हरकतें इस कदर घिनौनी और अमानवीय हैं कि वह किसी तरह की राहत का पात्र नहीं हो सकता. जजों ने यह भी कहा कि वह “एक विकृत सोच वाला व्यक्ति” है.
  2. 'शराब पीकर आदमी जानवर बन जाता है', कोर्ट की कड़ी टिप्पणी ने सामाजिक चेतावनी भी दी. यह टिप्पणी केवल आरोपी को नहीं, बल्कि समाज को भी संदेश देती है कि नशा, विशेषकर शराब, किस हद तक इंसान को हैवान बना सकता है, और ऐसे अपराधों को कोई माफी नहीं मिलेगी.
  3. बच्ची ने न्यायिक प्रक्रिया में बहादुरी दिखाई और आरोपी के खिलाफ गवाही दी. कोर्ट ने बच्ची की गवाही को पूरी तरह विश्वसनीय माना. 7 साल की उम्र में भी वह क्रॉस एग्जामिनेशन में नहीं डरी, जो बताता है कि उसके बयान में सच्चाई और दृढ़ता थी.
  4. डॉक्टर की ओर से पेश वकील ने गवाही को ‘ट्यूटरड’ बताया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पूरी तरह खारिज कर दिया. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई भी बच्चा इस उम्र में इतनी स्पष्टता और निरंतरता के साथ झूठ नहीं बोल सकता, खासकर जब वह अपने ही पिता के खिलाफ हो.
  5. वकील ने यह तर्क दिया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में 12 लाख से अधिक केस पेंडिंग हैं, इसलिए सजा पर रोक दी जाए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लंबित मामलों की संख्या कोई आधार नहीं हो सकती, खासकर ऐसे गंभीर और संवेदनशील मामलों में.
  6. एफआईआर बच्ची की मां ने दर्ज करवाई, जिसने बताया कि पिता ने हल्द्वानी में बच्ची के साथ दुष्कर्म किया. यह भी सामने आया कि बच्ची और मां बनारस में रहती थीं, और डॉक्टर हल्द्वानी में एक नर्सिंग होम चलाता था.
  7. बच्ची ने मां से कहा, 'पापा बुरे हैं, उन्होंने मुझे गंदी जगह छुआ', यह वाक्य बताता है कि बच्ची को अपनी पीड़ा समझाने के लिए कितनी मासूम भाषा का सहारा लेना पड़ा, जो खुद ही एक करुण त्रासदी है.
  8. अदालत ने कहा कि हम देश की सबसे 'लिबरल बेंच' हैं, फिर भी राहत नहीं दे रहे, इसका मतलब गंभीर है. इस बयान का मतलब है कि यह बेंच आमतौर पर आरोपी को राहत देने में उदार मानी जाती है, लेकिन यहां अपराध इतना जघन्य था कि कोई रियायत मुमकिन नहीं थी.
  9. यह केस केवल न्यायिक मामला नहीं, बल्कि एक नैतिक चेतावनी है, पिता के रिश्ते की मर्यादा तोड़ी गई. समाज में ‘पिता’ को रक्षक माना जाता है, और जब वही व्यक्ति भक्षक बन जाए, तो कानून का सख्त होना जरूरी है, ताकि दूसरों को सबक मिले.
  10. याचिका अंततः वापस ले ली गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया कि बच्चियों के साथ अपराध करने वालों को माफ नहीं किया जाएगा. अदालत ने एक तरह से यह स्पष्ट संकेत दे दिया कि बाल यौन शोषण के मामलों में आरोपी की कोई भी तकनीकी दलील न्याय के रास्ते में बाधा नहीं बन सकती.

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