वंदे मातरम के 150 साल: आज़ादी के प्रतीक पर राजनीतिक विवाद, BJP-कांग्रेस में जुबानी जंग; बंगाल-महाराष्ट्र-राजस्थान में भी उठा सियासी तूफान
‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में वर्षभर चलने वाले समारोह का शुभारंभ किया, लेकिन यह जश्न जल्द ही सियासी जंग में बदल गया. भाजपा और कांग्रेस के बीच इस गीत की ऐतिहासिक और धार्मिक व्याख्या को लेकर विवाद छिड़ गया. भाजपा ने कांग्रेस पर 1937 में गीत के “छांटे गए संस्करण” को अपनाने और देवी दुर्गा से जुड़े श्लोक हटाने का आरोप लगाया, जबकि कांग्रेस ने पलटवार करते हुए भाजपा पर “धार्मिक ध्रुवीकरण” का आरोप लगाया.;
देशभर में आज़ादी की भावना जगाने वाले गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे हो चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में इसके पूर्ण संस्करण के सामूहिक गायन से वर्षभर चलने वाले कार्यक्रम का शुभारंभ किया. लेकिन जहां एक ओर यह आयोजन देशभक्ति और एकता का प्रतीक माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इस पर तीखी सियासत शुरू हो गई है. भाजपा ने कांग्रेस पर इसे “सांप्रदायिक राजनीति में झोंकने” का आरोप लगाया है, जबकि कई राज्यों में यह मुद्दा नई राजनीतिक जंग का कारण बन गया है.
भाजपा प्रवक्ता सी.आर. केसवन ने कांग्रेस पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि 1937 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने जानबूझकर वंदे मातरम का “ट्रंकेटेड वर्ज़न” (छांटा हुआ संस्करण) अपनाया, जिसमें देवी दुर्गा के स्तवन वाले श्लोक हटा दिए गए. केसवन ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर नेहरू और नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बीच हुए पत्राचार का हवाला देते हुए लिखा, “नेहरू ने अपने पत्र में कहा था कि वंदे मातरम की पृष्ठभूमि मुस्लिम समुदाय को नाराज कर सकती है. कांग्रेस ने धार्मिक आधार पर इस गीत को काटकर भारत की एकता को कमज़ोर किया.” भाजपा ने आरोप लगाया कि नेहरू का यह रुख आज भी कांग्रेस के नेताओं में दिखता है. केसवन ने कहा, “जैसे 1937 में नेहरू ने देवी दुर्गा के उल्लेख को हटाया था, वैसे ही राहुल गांधी ने 2024 में ‘शक्ति’ शब्द पर अपमानजनक टिप्पणी की.” उन्होंने आगे लिखा, “राहुल ने छठ पूजा को ड्रामा कहा, यह मानसिकता वही ‘हिंदू विरोधी सोच’ का आधुनिक रूप है.”
भाजपा ने इसे “वंदे मातरम के ऐतिहासिक अपमान” की संज्ञा दी और कहा कि मोदी सरकार अब इसके पूर्ण संस्करण के साथ “राष्ट्रवाद का पर्व” मना रही है.
पश्चिम बंगाल में ममता का नया विवाद - अलग राज्य गीत की घोषणा पर BJP का हमला
वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक ‘राज्य गीत’ बनाने की घोषणा की, जिसके बाद भाजपा ने उन पर हमला बोला. भाजपा नेता दिलीप घोष ने कहा, “वंदे मातरम बंगाल की ही देन है. एक ओर रवींद्रनाथ टैगोर ने राष्ट्रगान लिखा, दूसरी ओर बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने राष्ट्रगीत. ऐसे में अलग राज्य गीत की क्या ज़रूरत?” घोष ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी बंगाल की सांस्कृतिक विरासत को “राजनीतिक मतभेदों” की भेंट चढ़ा रही हैं.
महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी MLA अबू आज़मी ने कहा - वंदे मातरम इस्लाम के खिलाफ
महाराष्ट्र में सपा विधायक अबू आसिम आज़मी ने वंदे मातरम न गाने की बात कहकर नया विवाद खड़ा कर दिया. आज़मी ने कहा कि “वंदे मातरम इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है, इसलिए मैं इसे नहीं गाऊंगा.” उनके बयान पर भाजपा मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा ने प्रतिक्रिया देते हुए घोषणा की कि वे आज़मी और कांग्रेस नेताओं असलम शेख व अमीन पटेल के घरों के बाहर सामूहिक वंदे मातरम गायन कराएंगे. इस पर आज़मी ने पलटवार करते हुए कहा, “कोर्ट ने साफ कहा है कि राष्ट्रीय गीत का सम्मान ज़रूरी है, गाना नहीं. जब हमने मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने के आदेश माने, तो अब यह ज़बरदस्ती क्यों?” भाजपा नेता नवनाथ बन ने कहा, “जिन्हें वंदे मातरम से समस्या है, उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए.” इस बयान के बाद विवाद और गहराता गया.
राजस्थान में मदरसों में वंदे मातरम गाने का आदेश, कांग्रेस बोली - BJP बना रही है फालतू विवाद
राजस्थान में राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने सभी मदरसों में वंदे मातरम के अनिवार्य गायन का आदेश जारी किया, जिस पर कांग्रेस ने कड़ा विरोध जताया. कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “यह कोई नया नियम नहीं है. वंदे मातरम पहले से ही स्कूलों में गाया जाता है. BJP जानबूझकर इसे सांप्रदायिक रंग दे रही है ताकि चुनावी फायदा उठा सके.” कांग्रेस का कहना है कि भाजपा “एकजुटता के प्रतीक” गीत को “धार्मिक विभाजन” का जरिया बना रही है.
‘वंदे मातरम’ का इतिहास: आज़ादी की पुकार से राजनीति के मंच तक
1875 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने वंदे मातरम की रचना की थी. इसे पहली बार 1896 में रवींद्रनाथ टैगोर ने सार्वजनिक रूप से गाया था. आज़ादी के आंदोलन में यह गीत ‘ब्रिटिश राज के खिलाफ प्रतिरोध की आवाज़’ बन गया. 1950 में इसे भारत का राष्ट्रीय गीत (National Song) घोषित किया गया.
लेकिन अब, 150 साल बाद, यही गीत राजनीतिक दलों के बीच वैचारिक संघर्ष का प्रतीक बन गया है. जहां भाजपा इसे “मां भारती की आराधना” और “राष्ट्रवाद का उत्सव” बता रही है, वहीं कांग्रेस और क्षेत्रीय दल इसे धार्मिक प्रतीकों के राजनीतिक इस्तेमाल की साज़िश कह रहे हैं.
एकता का प्रतीक या सियासत का हथियार?
150 साल पहले वंदे मातरम ने भारत को एकता की डोर में बांधा था. आज वही गीत राजनीतिक मंचों पर विभाजन की आवाज़ बनता दिख रहा है. भाजपा इसे राष्ट्रीय अस्मिता का प्रश्न बना रही है, जबकि विपक्ष इसे “धर्म आधारित राष्ट्रवाद” का नया रूप बता रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद 2024 के चुनावी परिदृश्य में “भावनात्मक ध्रुवीकरण” का काम करेगा. एक वरिष्ठ विश्लेषक ने कहा, “वंदे मातरम अब सिर्फ गीत नहीं, बल्कि राजनीति का प्रतीक बन गया है - एक तरफ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की व्याख्या, दूसरी ओर धर्मनिरपेक्षता की चुनौती.”
150 साल बाद भी ‘वंदे मातरम’ का स्वर उतना ही प्रखर है - फर्क बस इतना है कि अब यह ब्रिटिशों के खिलाफ नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति की दिशा तय करने की जंग में गूंज रहा है.